मदर टेरेसा।


The Favorite Boy🌦: कुछ वर्ष पहले भारत की राजधानी दिल्ली में एक महासभा का आयोजन किया गया था।जहां अपार जनसमूह एकत्रित था, थोड़ी देर में श्वेत साड़ी पहने एक महिला मंच पर आईं। उसके शरीर पर कोई आभूषण नहीं था किंतु उसके व्यक्तित्व में इतना तेज था कि उसके प्रवेश करते ही जनता भाव विभोर हो उठी तालियों से सारा वातावरण को गूजने लगा।


उस महिला ने सहज भाव से सब को समझाएं कि प्रेम ही जीवन का मूलमंत्र है। सभी प्राणियों के प्रति प्रेम की भावना रखने से ही संसार में सुख और शांति की स्थापना हो सकती हैं। उसके सरल शब्दों ने वहां उपस्थित सभी जनों के ह्रदय को छू लिया और बहुत से लोगों ने उन्हें निर्धनों की सहायता के लिए धन दिया।


एक विद्यार्थी ने उन्हें अपनी घड़ी उतार कर दी और कहा,मेरे पास इसके अलावा और कोई मूल्यवान वस्तु नहीं है। कृपया इसे बेचकर रोगियों के लिए दवाइयां खरीद लीजिएगा।


एक वृद्ध व्यक्ति ने मठ मैले रुमाल में से ₹200 निकाले और कहा यह मेरे जीवन भर की कमाई है इसे आप स्वीकार कीजिए।


जानते हो वह महिला कौन थी? वह थी मदर टेरेसा। उन्हें मदन यानी मां की उपाधि इसलिए दी गई है कि उनका जीवन गरीब और रोगियों की सेवा में समर्पित था। उनके समर्पण की भावना के कारण ही उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।


मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 को युगोस्लाविया में हुआ था। उनका वास्तविक नाम एगनिज था। के कुछ वर्ष तो माता पिता के प्यार भरे संरक्षण में सुख से प्रतीत हुई।

 The Favorite Boy🌦: जब थोड़ी बड़ी हुई तो धार्मिक क्रियाकलापों में उनकी रुचि जागृत हुई।उन्हीं दिनों में कोलकाता की लारेटो के बारे में पता चला और उनके कार्य में से प्रभावित होकर वह उनकी संस्था में सम्मिलित हो गई। प्रशिक्षण के बाद उन्हें कोलकाता भेज दिया गया, जहां उनका मानव सेवा का स्वप्न साकार हुआ।


15 वर्षों तक वह लारेटो विद्यालय में पढ़ाती रही लेकिन उनके सेवा भाव को पूरा संतोष नहीं मिला। एक दिन उन्होंने ऐसा भयानक दृश्य देखा, जिसने उनके जीवन की दशा को नया मोड़ दे दिया। एक स्त्री सड़क पर लेटी हुई थी। उसके शरीर पर काफी चोट लगी थी। उसके शरीर के कई भाग गल चुके थे। उसके पूरे शरीर पर मक्खियां भिन्न-भिन्न आ रही थी। मदर टेरेसा ने उन्हें उठाया तथा अस्पताल में ले गई। मदर ट्रेसा उनके प्राण तो नहीं बचा पाई, लेकिन उन्हें शांति से मरने की सुविधा जरूर प्रदान कर सकी।


इस घटना के बाद उन्हें अपने जीवन का सही उद्देश्य समझ में आ गया। उन्होंने नई संस्था की स्थापना की जो आज मिशनरीज आफ चैरिटी के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें उन्होंने सभी को आश्रय दिया ।जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया था। उन्होंने अथक प्रयत्न कर कालीघाट में निर्मल हृदय आश्रम की स्थापना की ताकि में बेघर बार रोगियों की देखभाल व सेवा की जा सके। गंभीर बीमार बा मरणासन्न लोगों को यहां से आश्रय मिलने लगा।पूरे भारत में इस प्रकार के 60 आश्रम स्थापित किए गए।


एक बार कोलकाता की सियालदह स्टेशन पर एक स्त्री अपने बच्चे को एक मुसाफिर को यह कहते हुए, कि कृपया इसे 2 मिनट के लिए अपने पास रख ले तो मैं शौचालय हो लू। 2 मिनट के बाद मुसाफिर 2 घंटे तक उस स्त्री को ढूंढता फिरा लेकिन उसका कहीं पता ना चला। उस बच्ची को मुसाफिर ने मदद ट्रेसा को दे दिया। तो मदर टेरेसा ने उसे प्रेम से गले लगा लिया, ऐसे त्यागी अनाथ बच्चों के लिए इन्होंने निर्मल शिशु भवन की स्थापना की।


अब पूरे 20 मदर टेरेसा के कार्यों से परिचित था। इन्हें अनन्य प्रोत्साहन तथा धनराशि मिलने लगी थी ।दान में मिलने वाली धनराशि को भी सेवा के लिए समर्पित करती रही ।दान में एक वाहन मिलने पर उसे चलता फिरता चिकित्सालय बना दिया।


सं सार के अनेक राष्ट्रों संस्थाओं ने उन्हें उत्कृष्ट कार्यो के लिए इन्हें सम्मानित व अलंकृत किया। सन्

The Favorite Boy🌦: सन 1962 महीने पदम श्री अवार्ड द्वारा सम्मानित किया गया। सन् 1972 में जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार व मैग्सेसे अवॉर्ड भी मिला। सन 1979 में विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से भी नवाजा गया।


निरंतर कार्य करते रहने के कारण इनका स्वास्थ्य काफी गिर चुका था। अंततः 5 सितंबर 1997 की रात 9:30 करुणामई मां हमसे सदा के लिए इस संसार से चली गई।इनकी मृत्यु के लगभग 6 वर्ष बाद 19 अक्टूबर 2003 को पूर्व अपने वेटिकन में उन्हें संत की उपाधि से विभूषित किया।


निस्वार्थ सेवा द्वारा दया करुणा और प्रेम का जो बीज मदर टेरेसा ने बोया था। आज एक विशाल वृक्ष का रूप धारण कर चुका है।



Note- मदर टेरेसा का जीवन चरित्र अपनी आने वाली संतान को सदैव सेवा कार्य करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

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