राजा विक्रमादित्य की कहानी।


🌦: गर्मी का दिन था। दिन का तीसरा पहर बीत रहा था,फिर भी गर्मी घटने के बजाय बढ़ती जा रही थी। गर्मी के मारे सभी जीव-जंतुओं का बुरा हाल था।


उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य और महाकवि कालिदास बैठे थे। शेष नवरत्न अपने-अपने घरों को जा चुके थे। यह वही विक्रमादित्य थे, जो अपनी वीरता वाह न्याय प्रियता के लिए हमारे इतिहास में प्रसिद्ध हैं, मेघदूत, रघुवंश अभिज्ञान, शकुंतलम आदि संस्कृत रचनाओं के रचयिता कालिदास को सभी जानते हैं।


राजा और महाकवि गर्मी से बेहद परेशान थे। दोनों पसीने से लथपथ थे। प्यास के मारे बार-बार कंठ सूख आ जा रहा था। दोनों के पास मिट्टी की एक-एक सुराही रखी थी प्यास बुझाने के लिए थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें पानी पीना पड़ रहा था।


🌦: राजा विक्रमादित्य परम सुंदर व्यक्ति थे।इतने सुंदर थे कालिदास उतने ही कुरूप थे  गर्मी और पसीने से कालिदास के चेहरों को और भी कुरूप बना दिया था। पर विक्रमादित्य के गोरे चेहरे पर पसीने की बूंद मोती जैसी चमक रही थी।


विक्रमादित्य का कालिदास के प्रति व्यवहार मित्र वक्त था। दोनों एक दूसरे को बेवकूफ बनाने की ताक में लगे रहते थे। राजा किसी अवसर को खोना नहीं चाहते थे परंतु महाकवि से करार उत्तर पाकर भी प्रसन्न ही हो रहते थे।


विक्रमादित्य का ध्यान जब गर्मी से विकृत कालिदास के चेहरे की ओर गया।तो वे चुटकी लेने के लिए मचल उठे। वे बोले महाकवि आप अत्यंत विद्वान चतुर और गुणी हैं।लेकिन शायद आपको सुंदर रूप भी दिया होता तो कितना अच्छा होता।


महाकवि इसका उत्तर में कल दूंगा मां का मैंने कहा।


संध्या होते ही कालिदास सीधे सुनार के पास गए। उन्होंने रातों-रात शुद्ध सोने की सुंदर सुराही तैयार करने का आदेश दिया और घर लौट आ गए। अगले दिन सबसे पहले कालिदास दरबार में पहुंच गए, उन्होंने राजा की सुराही हटा दी और उसकी जगह सोने की सुराही रख दी।


ठीक समय पर राजा अंग रक्षकों के साथ पधारे। कल की तरह आज भी बहुत गर्मी थी। राजा को पंखे तेजी से झले जा रहे थे। लेकिन उसकी हवा में भी गर्मी थी दरबार की कार्रवाई शुरू करने से पहले राजा ने पानी के लिए संकेत किया।उनकी सुनाई से पानी उड़ेल कर एक सेवक ने गिलास भरा। पानी होठों पर लगाते ही वह सेवक पर बरस पड़े क्या सुनाई में उबला हुआ पानी भरे हुए हो?


सेवक की घिग्घी बांध गई। कालीदास में तेजी से आकर सुनाई का कपड़ा हटाया। सोने की सुराही देखकर सभी दंग रह गए। उसकी सुंदरता का गुणगान करने लगे।


राजा विक्रमादित्य क्रुद्ध होकर बोले हद हो गई पानी भी कहीं सोने की सुराही में रखा जाता है। कहां गई मिट्टी की सुराही सोने की सुराही यहां किस बेवकूफ ने रखी पास में खड़े कालिदास ने शांत स्वर में कहा वह बेवकूफ मैं ही हूं, श्रीमान!


जी हां, महाराज! सोने की सुराही मैंने ही रखी है।आप सुंदरता के प्रेम पुजारी है ना?कल मेरी दृष्टि की मिट्टी की सुराही पर चली गई थी। वह बहुत बड़ी बदसूरत लग रही थी, मैंने सोचा कि सुंदरता के पुजारी के पास बद्दी सुनाई किस बेवकूफ ने रख लाई है। उसे उठाकर मैंने शुद्ध सोने की यह सुंदर सुराही रख दी क्या अच्छी नहीं है? इतना कहकर भी चुप हो गए।


राजा महाकवि का की बात समझ गए।उन्होंने कवि से क्षमा मांगी। दरबारियों में कानाफूसी होने लगी, और कोई उस घटना के कारण को जान नहीं पाया। तब राजा की अनुमति से महाकवि ने संक्षेप में बता दिया दरबारी भी हंसी बिना ना रह सके।



Note-दोस्तों शारीरिक सुंदरता जरूरी नहीं, व्यक्ति का स्वभाव और आचरण अच्छा होना चाहिए

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