भारतीय समाज में गाय को माता कहा गया है। गाय ममता की मूर्ति है। इसका दूध अमृत है।गाय का गोबर पवित्र माना गया है।कृषि का आधार है।यह समाज के आर्थिक उन्नति में सहायक है। इस पाठ में देवी अहिल्याबाई की न्याय प्रियता और गौ माता की ममता का सुंदर वर्णन किया गया है।
इंदौर की देवी अहिल्या बाई इतिहास में एक मात्र महारानी हुई है। जिनके नाम के आगे देवी संबोधन लगाया जाता है। उनकी दिव्यता और न्याय प्रीता विश्व प्रसिद्ध है।इनके समय उनके शासनकाल में गाय से संबंधित एक ऐसी अद्भुत घटना घटी, जिसने गौ माता की ममता क्षमाशील का और दया की भावना को जन-जन में वक्त कर दिया।
एक बार की बात है इंदौर नगर मे मार्ग के किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी। उसी समय देवी अहिल्या बाई के पुत्र मलोजी राव अपने रथ पर सवार होकर गुजरे।मालोजी राम बचपन से बहुत शरारती और दुष्ट स्वभाव के व्यक्ति थे।राह चलते लोगों की को परेशान करने में उन्हें विशेष आनंद आता था। अचानक गाय को बचवा उछलकर उनके रथ के सामने आ गया। गाय भी बछड़े के पीछे दौड़े लेकिन तब तक मालो जी का रथ बछड़े को कुचलते हुए निकल गया।गाय बहुत देर तक रंभाती रही।वह कुछ देर बाद अहिल्याबाई के दरबार के बाहर टांगे घंटे के पास पहुं ची।उस घण्टे को महारानी ने तुरंत न्याय हेतु विशेष रूप से लगवाया था। जिसे तत्काल न्याय की आवश्यकता होती थी उसे बजा देता था ।जिसके बाद तुरंत दरबार लगाया जाता था और उसे किसी छड न्याय मिलता था। घण्टे की आवाज सुनकर देवी अहिल्या बाई ने एक विचित्र दृश्य देखा,कि एक गाय घंटा बजा रही थी, रानी के आदेश से गाय का मालिक दरबार में उपस्थित हुआ। महारानी ने उससे कहा आज तुम्हारी गाय ने स्वयं आकर न्याय की गुहार की है। जरूर तुम गौमाता को समय पर चारा पानी नहीं देते होंगे। उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर कहा; माते श्री ऐसी कोई बात नहीं है।
महारानी- तो क्या बात है गौमाता को किसने सताया।
गाय का मालिक - गों माता अन्याय का शिकार हो तो हुई है और उसका कारण मैं नहीं कोई और है।
महारानी - तो वह अपराधी कौन है जो गौ माता पर अन्याय करता है।
गाय का मालिक- क्षमा करें मातेश्वरी मुझे उसका नाम बताने में प्राणों का भय है।
महारानी -अपराधी कोई भी हो, उसका नाम निडर होकर बताओ हम तुम्हें अभयदान देते हैं।
गाय का मालिक- बात यह है कि राजपूत मालोनी के रथ के पहिए से गौ माता का बछड़ा कुचल गया। तभी गौमाता न्याय की गुहार लगाने दरबार में आई है।
महारानी ने मैनाबाई से कहा- यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दे तो उसे क्या सजा मिलना चाहिए।
मैना देवी ने कहा- जिस प्रकार से हत्या हुई है उसी प्रकार से उसे भी प्राण दंड मिलना चाहिए।
महारानी- यदि वा कोई अपना हो तो।
मैनादेवी - अपराधी तो अपराधी होता है मातेश्वरी अपराधी के प्रति अपने अपने या पाराए का भाव नहीं होना चाहिए।
महारानी की आज्ञा से सिपाहियों ने राजपूत मालोनी को पकड़ लिया हाथ पैर बांधकर उसी मार्ग पर डाल दिया सारथी को उपस्थित होने पर आदेश दिया गया।
सारथी - मातेश्वरी की जय हो, सेवक उपस्थित है क्या आदेश है?
महारानी - गौ माता के अपराधी को राजमार्ग पर डाल दिया गया है उसे रात से कुचल दो।
सारथी -अपराध क्षमा करें मातेश्वरी अज्ञा हो, तो कुछ निवेदन करूं।
महारानी- अनुमति है कहो क्या कहना चाहते हो।
सारथी - वास्तव में अपराधी तो मैं हूं मुझे सारथी के द्वारा ही बछड़े की हत्या हुई है।इसलिए मुझे प्राण दण्ड मिलना चाहिए युवराज को नहीं।
महारानी-तुमने रथ रोका क्यों नहीं।
सारथी - आगे बढ़ने का आदेश मातेश्वरी।
महारानी- सारथी तो स्वामी के दिशा निर्देशों का पालन करता है। इसलिए वास्तविक उत्तरदायित्व स्वामी का ही होता है इसलिए दंड का भागी भी स्वामी की होगा तुम आज्ञा का पालन करो।
सारथी -सारथी अपने स्वामी के जीवन का रक्षक होता है वह उसका प्राण नहीं ले सकता आप चाहें तो मुझे दंड दे दे।
महारानी- तुम्हारी निष्ठा सहनी है, लेकिन अपराधी को तो प्राण दण्ड अवश्य मिलेगा ।यही न्याय की मांग है।
सारथी -हाथ जोड़कर महारानी मालोनी जी राजकुल के एकमात्र कुल दीपक है।
महारानी ने स्वयं रथ पर सवार होकर रथ को तेजी से आगे बढ़ाया। तभी एक अप्रत्याशित घटना हुई गौमाता रथ के सामने खड़ी हो गई गौ माता को हटाकर देवी ने रथ को पुनः आगे बढ़ाया गया था।फिर सामने खड़ी हो गई सारा जन समुदाय को माता की जय जयकार करने लगा, देवी अहिल्याबाई की आंखों से आंसू धारा बहने लगी का माता ने स्वयं का पुत्र को कर ममता की वशीभूत होकर हत्यारे को प्राण दान दिया तभी तो हमारे ऋषि-मुनियों ने गाय को माता कहा है।