एक राजा की महादान की कहानी।


 एक विशाल देश के राजा बहुत बीमार थे। धुआं लगने या धूल उड़ने से उनकी बीमारी और बढ़ जाती थी, कभी उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती, तो कभी आंखों से पानी निकलता। इस रोग के विचार के लिए अनेक वैद्य और हकीम आए। सब ने भरसक प्रयास किया, पर कोई किसी की भी दवा से लाभ नहीं हुआ राजा निराश होते जा रहे थे। प्रजा उदासी में डूब गई थी,अंत में राज्य के महामंत्री ने राज ज्योतिषी को बुलाया महामंत्री ने उनसे सलाह मशविरा किया और आखिर क्या किया जाए महाराज के स्वास्थ्य में सुधार कैसे हो राज ज्योतिषी ने बहुत सोचा और अपनी ज्योतिष गणना की बहुत बिचार करने के बाद कहा। कि राजा की आयु वृद्धि लिए यज्ञ करना होगा कुछ दान करना होगा ऐसा दान जो सब के काम आए तभी इस संकट से छुटकारा मिल पाएगा।


महामंत्री गहरी सोच में पड़ गए। यह कैसे हो? आज में हवन करते हुए धुआं होगा। आग जलाई जाएगी जिससे गर्मी होगी कहीं इससे राजा का स्वस्थ और ना खराब हो जाए।


इस स्थिति में राजा को कैसे बचाया जाए और यज्ञ भी हो जाए?


अनेक पंडितों से परामर्श किया गया अंत में एक युवा पंडित फिर आगे आया जिसने राज पंडित को एक उपाय सुझाया। उपाय सुनकर सब ने वैसा करने के लिए अपनी सहमति दे दी। इस अनोखे यज्ञ की रूपरेखा तैयार होने लगी। यह कैसे होगा यह अभी भी रहस्य से बना हुआ था। तो जा ऐसा अनोखा है जो देखने के लिए उत्सुक थी या बिना हवन बिना अग्नि बनाने वाला यज्ञ कैसे होगा। उस पर राजा ऐसा दान करेंगे कि उसका लाभ सबको मिलेगा उस दिन की आतुरता से प्रतीक्षा करने लगे अंत में वो शुभ दिन आ गया।


एक खुले मैदान में यज्ञ करने की घोषणा की गई। वहां देखने वालों की भीड़ जमा हो गई लोगों ने देखा कि उस मैदान में खूब साफ-सुथरा किया गया था।उसमें एक कोने से दूसरे कोने तक 108 गड्ढे खुदे हुए थे। थोड़ी ही देर में राजा पंडित अस्वस्थ राजा को संभालते हुए बाहर ले आए। उनके पीछे बड़े बड़े ठोलो पर लदे हुए पौधे लाए जाने लगे। पंडित जी हर बार मंत्र उच्चारण कर पौधा महाराज को देते जिन्हें एक-एक कर उन गड्ढों में डालते जाते।


महाराज ने वहां आंवला, गुलाब जामुन, बरगद ,पीपल, सेमल कटहल नीम आदि के पौधे लगाएं।


इसी प्रकार उन्होंने वहां एक नक्षत्र वाटिका लगाई। पंचवटी और जड़ी-बूटियों की वाटिका का भी लगाई गई। नवग्रह वाटिका भी लगी अब लोगों को इस अनोखे यज्ञ का महत्व समझ में आ गया। वे समझ गए कि पेड़ पौधे से मिलने वाला लाभ ही दान है था यह दान सबके लिए था।


उन पौधों को देखभाल राजा स्वयं ही करते थे। उनमें समय समय पर खाद व पानी डालते थे। जैसे-जैसे पौधे में नई-नई को प्ले आती गई। वैसे-वैसे महाराज का स्वस्थ वर्धक होता गया। पौधों को बड़ा हो होता देख महाराज प्रसन्न रहते थे। उनमें नया उत्साह और प्रजा में नई आशा का संचार हो गया पर जाने इस अनोखे महाराज की कोटि-कोटि प्रशंसा की।


Note- दोस्तों इस दुनिया में आप किसी भी प्रकार का दान करें लेकिन वृक्ष लगाने से अच्छा कोई दान नहीं है जिससे मेरी प्रकृति सुंदर रहेगी ,अगर प्रकृति सुंदर रहेगी तो सब कुछ सुंदर रहेगा स्वास्थ्य भी और बाकी चीजें भी।

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