सचिन के घर की खिड़की के कब्जे पर चिड़िया ने अंडे दिए थे। सचिन और उसकी बहन रागिनी चिड़िया को बाहर हो जाते जाते देखा करते थे चिड़िया को वहां बैठे देख कर दोनों को इतना मजा आता था कि उसे जलपान में दूध और इमरती की सुध ही नहीं रहती थी धीरे-धीरे चिड़िया की दिनचर्या में परिवर्तन आने लगा दे अपने घोसले में अधिक देर तक रुकने लगे, सचिन और उनकी बहन रागिनी के मन में विविध प्रकार के प्रश्न आते थे कि कहीं चिड़िया बीमार तो नहीं है चिड़िया का घोंसला कैसा होगा?
चिड़िया ने अंडे तो नहीं दिए हैं? अंडे कितने होंगे उनका रंग कैसा होगा ?इन बातों का जवाब देने वाला कोई नहीं था। मम्मी को घर के काम काजो से ना फुर्सत थी। न पापा को पढ़ने लिखने से, दोनों बच्चे आपस में ही सवाल जवाब करके संतुष्ट हो लिया करते थे।
रागिनी कहती थी - क्यों भैया बच्चे अंडे से मिलकर फुर्र से उड़ जाएंगे।
सचिन विद्वानो जैसे गर्व से कहता- नहीं रे पगली बगैर पैरों के निकले बेचारे कैसे उड़ेंगे?
रागिनी- बच्चों को क्या खिलाएगी बेचारी?
सचिन इन पेचीदा सवाल का जवाब कुछ देर नहीं दे सकता था। इस तरह तीन-चार दिन गुजर गए, दोनों बच्चों को जिज्ञासा दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती थी। अंडों को देखने के लिए अधीर हो उठते थे, उन्होंने अनुमान लगाया कि आप जरूर बच्चे निकल आए होंगे,बच्चों के चारे का सवाल अब उनके सामने आ खड़ा हुआ चिड़िया इतना सारा चारा कहां से लाएगी इस मुसीबत का अनुमान लगाकर दोनों बच्चे घबरा उठे बच्चों ने छज्जे पर अनाज रखने का फैसला किया।
रागिनी- क्यों भैया बच्चों को धूप न लगती होगी?
सचिन ने कहा- तू सही कह रही है। इधर तो मेरा ध्यान ही नहीं गया, धूप से उन्हें प्यास भी लगेगी, ऊपर कोई छाया भी तो नहीं है अब पानी की प्याली और कटोरी मैं थोड़ा चावल रखने का प्रस्ताव बन गया।
अंत में उसने यह मुश्किल भी हल कर दी वह रागिनी से बोला-जाकर कूड़ा फेंकने वाली टोकरी उठा लाओ मम्मी को मत दिखाना।रागिनी धड़का टोकरी उठा लाई, देख ऐसे ही घोसले पर इसकी आड़ का कर दूंगा, रागिनी ने दिल में सोचा भैया कितने समझदार हैं।
गर्मी का दिन था पिताजी काम से ऑफिस गए थे। मा दोपहर में डांट डपट कर दोनों बच्चों को सुलाने के साथ-साथ स्वयं भी सो गई परंतु बच्चे ने तो झूठ मूठ में सोने का मन नाटक किया।जब ही मालूम हुआ कि मैं अच्छी तरह सो गई दोनों चुपके से उठे धीरे से दरवाजे की खिड़की खोल कर बाहर आ गए, अंडों के हिफाजत की तैयारी होने लगी।सचिन स्टोर ले आया लेकिन फिर भी काम ना चला तो छोटी सी चौकी उठा लाया और उसके ऊपर स्टूल रखा रागिनी नहीं स्टूल पकड़ा और सचिन चड गया जूही कब्जे पर हाथ रखा चिड़िया उड़ गई। सचिन ने देखा थोड़े से दिन के बचे हुए हैं और उस पर है तीन अंडे रागिनी ने नीचे से पूछा कैसे हैं बच्चे हैं भैया।
सचिन- तीन अंडे हैं अभी बच्चे नहीं निकले हैं।
रागिनी - जरा हमें दिखा दो भैया कितने बड़े हैं।
सचिन - दिखा दूंगा पहले जरा चिथरे के आ नीचे बिछा दूं बेचारे अंडे तिनके पर पड़े हैं।
रागिनी दौड़कर पुरानी धोती फाड़ कर एक टुकड़ा ले आई सचिन उसे लेकर दो-तीन तह करके तिनके पर बिछाकर धीरे से अंडे उस पर रख दी।
रागिनी ने फिर कहा - हमको भी दिखा दो भैया।
सचिन दिखा दूंगा - पहले टोकरी तो दे दो थोड़ा छाया कर दूं।
रागिनी ने टोकरी दे दी सचिन ने उसे एक टहनी से टिका कर जाया कर दिया और फिर पानी की प्याली और चावल के दाने भी रागिनी से मांग कर रखती है तब रागिनी ने कहा अब तुम उतर जाओ मैं भी देखूंगी सचिन ने कहा बुद्ध मत बनो।जल्दी से स्टूल रखो चौकी रखो, मां जागने वाली होगी हम लोग पकड़ लिए जाएंगे मैं तुम्हें कल दिखा दूंगा दोनों ने सामान रखा और चुपके से दरवाजा खोल कर सो गए।
4:00 बजे अचानक रागिनी की नींद खुली दरवाजा खुला हुआ था दौड़ी हुई कर्निन के पास आई।
ऊपर देखी तो टोकरी का पता ना था ।सहयोग से उसकी नजर नीचे गई और उल्टे पांव दौड़ती हुई कमरे में जाकर जोर से बोली भैया अंडे तो नीचे पड़े हैं बच्चे उड़ गए सचिन घबराकर उठा बाहर आकर देखा कि तीनों अंडर टू टे नीचे पड़े हैं और उनसे कोई चूने सी चीज बाहर निकल कर आई है पानी की टहली भी टूट कर नीचे पड़ी है दोनों बच्चे जब तक कुछ समझ पाते उनकी मां हाथ में सोटी लिए बोली तुम दोनों दो मैं यहां क्या कर रहे हो?
रागिनी ने कहा- चिड़िया के अंडे टूट पड़े हैं।
मां ने आकर टूटे हुए अंडे को देखा गुस्से से बोली तुम लोगों ने अंडे को छुआ होगा अब तो रागिनी को भैया पर जरा भी तरस नहीं आया और उसने कहा उन्होंने अंडों को छेड़ा था मां।
मां ने सचिन से पूछा- क्यों जी? सचिन भीगी बिल्ली बन खड़ा रहा ।
मां- तू कहां पहुंचा कैसे?
रागिनी - चौकी पर स्टाल लगाकर चढ़े।
सचिन- तू एस्टुल थामे नहीं खड़ी थी
रागिनी -तुम ही ने तो कहा था।
मां तू इतना बड़ा हो गया है तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम कि छूने से चिड़िया के अंडे गंदे हो जाते हैं चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती है रागिनी ने डरते डरते पूछा तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरा दी हैं ।
मां ने कहा - तो और क्या करती।
सचिन रोनी सूरत बना कर बोला मैंने तो केवल अंडों को गद्दी पर रख दिया था मां।
मां को हंसी आ गई मगर सचिन को अपनी गलती पर कई दिनों तक पश्चाताप होता रहा अंडों की सुरक्षा करने के प्रयास में उसने उन का सत्यानाश कर डाला इसे याद कर वह कभी कभी रो पड़ता था।
Noet-दोस्तों हम लोगों की लाइफ में भी कभी-कभी गलती हो जाती है अनजाने में किसी काम अच्छा करने को सोचते हैं बुरा हो जाता है हमको कोई भी काम ध्यान से एक दूसरे से पूछ कर करना चाहिए।