(स्थान-सिकंदर का सैन्य शिविर ,सिकंदर और तक्शिसिला और के शासक आम्भिक बैठे है,कश्मीर के राजा पुरुराज को बंदी रूप मेव चयन सेनापति मंच पर लाता है)
सेनापति-सम्राट
की जय हो,
पुरुराज – भारत का वीर पुरु भी यवनराज को अभिवादन करता है ,
सिकंदर-अरे,बंधन में होते हुए भी अपने को वीर मानते हो , पुरुराज ?
पुरुराज-यवन राज! सिंह तो सिंह ही होते है , चाहे पिंजरे में हो अथवा
वन में ,
सिकंदर – लेकिन पिजरे में बंद शेर कोई पराक्रम नही कर सकता है ,
पुरुराज-अवसर मिलने पर वह पराक्रम करता है, कहा गया है की मृतु हो या
बंधन जय हो या पराजय ,दोनों दशा में वीर – वीर होता है , यवराज ! वीरभाव ही वीरता
है .
आम्भिक – सम्राट !यह वाचाल है,इसे मर देना चाहिए ,
सेनापति-आदेश दे समार्ट
सिकंदर – पुरु ! मेरी मित्रता स्वीकार न करने का क्या कारण था
पुरुराज-अपने राज्य की रक्षा कारण तथा राजद्रोह से मुक्त पाना
सिकंदर – मितत्रता राजद्रोह कैसे हो सक्तियो है ?
पुरुराज-हे यवनराज,यहाँ बहुत से राजा है आप मित्रता और संधि के द्वार
उन्हें अपने में मिलाकर भारत को जितना चाहते है ,
आम्भिक सकता प्रमाण है
सिकंदर – भरता एक रत्र्रा है , नही ! यहाँ के राजा आपस में द्रोह
करते है ,लड़ते है
पुरुराज-यह हमारा अपना आन्तरिक मामला है हमारी भाषा ,हमारे वेश ,
हमारे खान पान अलग –अलग है ,किन्तु हम सब
भारतीय एक है
सिकंदर – तो क्या एस प्रकार मेरी भारत विजय दुष्कर है
पुरुराज – यह कठिन ही नही असम्भव भी है
सिकंदर- ( क्रोध में ) एस समय तुम मेरे सामने बंदी के रूप में खड़े हो
विशवजय सिकंदर के समाने ही ,सोचकर बोलो
पुरुराज – जनता हु लेकिन सत्य तो सत्य ही हिता है भारतीय वीर
मर्त्भूमि की रक्षा के लिए युद्ध में कूद पड़ते है क्युकी जननी और जन्म भूमि स्वर्ग
से भी बढकर है
सिकंदर- पुरुराज ! मै तुम्हारे देश प्रेम की भावना का सम्मान करता हु
लेकिन इस समय तुम मेरे बंदी हो , तुमारे
साथ कैसा व्यवहार किया जाय
पुरुराज- जैसे एक वीर दुसरे वीर के साथ करता है
सिकंदर – वीर पुरुराज ! तुम धन्य हो , वास्तव में तुम वीर हो , धन्य
है तुमारी मात्र भूमि और धन्य है भारतीय संस्क्रती ,
जो एक वीर की मितत्रता ,दुसरे वीर को स्वीकार है
पुरुराज- अवश्य , स्वीकार है क्युकी यह भारतीय संसिक्रती ही है ,जहा
मित्र के साथ मित्रता का ववहार होता है ,
नोट - दोस्तों आप जानते हैं भारत में बहुत से महान वीर हुए हैं जिन्होंने अपने राष्ट्र के लिए बलिदान दिया और राष्ट्र के प्रति हमेशा ईमानदार रहें जो कि इस पाठ में दिख रहा है।