रावण को सोने की लंका कैसे मिली?

 

रावण को सोने की लंका कहां से मिली। 


क्या आपने सोचा है, कभी की रावण के पास सोने की लंका आई कहा से।कहानी कुछ इस प्रकार है, की देवी पार्वती का गुफाओं में रहते हुए मन ऊब गया था। तो उन्होंने भगवान महादेव से अनुरोध किया। की बाकी देवताओं की तरह मेरे लिए भी एक छोटा सा महल बन जाता, तो बहुत अच्छा होता। भगवान महादेव को यह बात समझ में आ गई। और उन्होंने सहमति दी, भगवान ने सबसे योग्य वास्तुकार विश्वकर्मा को बुलाया गया। पहले नक्शा तैयार हुआ, फिर शुभ मुहूर्त में भूमि पूजन हुआ और तेजी से काम शुरू हुआ।



महल आखिरकार भगवान शंकर और माता पार्वती का था इसलिए कोई नार्मल महल नहीं बन रहा था,एक विशालकाय महल बनाया गया। जैसे एक नगरी वसा दी गई हो,कला की अनुपम कृति जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। आखिरकार निर्माण करने वाला कौन था महान विश्वकर्मा ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर इस महल को तैयार किया। तीनों लोकों में जय जयकार हुई, एक ऐसी नगरी का निर्माण हुआ। जो पृथ्वी पर पहले कभी थी ही नहीं। गणेश जी और कार्तिकेय जी की खुशी का ठिकाना नहीं था। मां पार्वती बड़ा प्रसन्न थी बस एक ही चिंता थी। कि इस अपूर्व महल में पूजा का कार्य किसे सौंपा जाए। पूजा अनुष्ठान करने वाला ब्राह्मण भी इस योग्यता का होना चाहिए जैसा ये खूबसूरत महल बना है।



और भगवान महादेव जी से पूछा जाता है किसे बुलाया जाए और उन्होंने बड़ा सोचा बिचारा और एक नाम दिमाग में आया। “रावण”समस्त दिशाओं में ज्ञान,बुद्धि, विवेक और अध्ययन से जिसने तहलका मचा रखा था, जो तीनों लोकों में आने जाने की शक्ति रखता था, जिसने निरंतर तपस्या से देवताओं से प्रसन्न किया। जिसकी कीर्ति दसों दिशाओं में फैली हुई थी। ऐसे रावण को श्रीलंका से कैलाश पर्वत पर बने विशाल महल की पूजा अनुष्ठान के लिए बुलाया गया। रावण ने आना स्वीकार कर लिया, और सही समय पर पहुंच गया। गृह प्रवेश की पूजा अलौकिक करवाई गई, बहुत ही श्रेष्ठ से सर्वश्रेष्ठ देवताओं और विद्वानों को आमंत्रित किया गया। इस अनुष्ठान को संपन्न होने के बाद, जब  अतिथि सत्कार हुआ।



अतिथियों और विद्वानों को भोजन करवाया गया। इसी बीच माता पार्वती ने कहा, कि दक्षिणा मांग लीजिए तो इस बात पर रावण ने कहा मां आप तो पूरे विश्व की माता है मैं आपसे क्या दक्षिणा मांगूंगा।तो इस बात पर माता पार्वती ने कहां दक्षिण के बिना अनुष्ठान पूरा नहीं होता। और आपके आने से तो समस्त उत्सव की शोभा अलौकिक हो गई है। आप अपनी इच्छा से जो चाहे मांग ले। भगवान महादेव आपको जरूर प्रसन्न करेगे। रावण ने कहा मैं आपको कष्ट नहीं देना चाहता माता, मैने तो दर्शन कर लिए वही काफी है मेरे लिए। वह और विनम्र हो रहा था।



तो माता ने कहा,यह तो आपका बड़प्पन है लंका पति। लेकिन अनुष्ठान की पूर्ति के लिए दक्षिणा आवश्यक है। आप अपनी इच्छा अनुसार जो चाहे मांगे हम आपका सम्मान करेंगे। रावण ने कहा मुझे संकोच हो रहा है माता। तो माता ने कहा संकोच छोड़ना होगा और आपको यह यज्ञ की पूर्ति के लिए सोचना होगा। तो थोड़ा रुक कर रावण ने कहा यदि आप सचमुच आप मेरी पूजा से प्रसन्न है। और मुझे संतुष्ट करना चाहती हैं। यदि सचमुच भगवान जी मुझे दक्षिणा देने का साहस रखते हैं, तो आप यह सोने की नगरी मुझे दे दें। जब रावण ने कहा तो माता जी थोड़ा रुक सी गई।



पास ही बैठे महादेव जी ने कहा तथास्तु। रावण बड़ा प्रसन्न हुआ उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। और भगवान जी के अनुरोध पर विश्वकर्मा ने यह नगरी कैलाश पर्वत से उठाकर श्रीलंका में स्थापित कर दी। तब से ही रावण की लंका सोने की कहलने लगी। तब से मां पार्वती के मन में कभी भी सोने की महल की इच्छा नहीं जागी। 



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