जीवन जीने की कला।

 शिक्षा से यह अपेक्षा है कि विद्यार्थी जीवन जीने की कला सीखे बालक,बालिका हमें पर लिखकर सुंदर स्वस्थ बने। इसके लिए विद्यार्थियों को अपने जीवन में श्रेष्ठ गुणों को अपनाना होगा तभी उनका जीवन गुलाब के फूलों की तरह सुगंधित बन सकेगा।

 

1.सुंदर दिनचर्या का निर्वाह-

प्रतिदिन सवेरे जल्दी उठना अभिवादन करना एक ग्लास पानी पीना सुबह की चाय बिल्कुल न लेना शौच जाना ठीक से मंजन करना कुछ व्यायाम करना स्वच्छ कपड़े पहनना।समय सारणी के अनुसार बस्ता लगाना जलपान करना अच्छी प्रकार से कुल्ला करना बसते को हाथ से ही उठाकर आकर ले जाना गर्दन व् पीठ पर ना लादना विद्यालय समय पर पहुंचना तथा साथ जलपान बेला के लिए ताजा भोजन ले जाना विद्यालय पहुंचकर खूब मन लगाकर पढ़ना खेल के समय खेलना सब करना कोई कठिन बात नहीं केवल अच्छी आदतों को अपनाने की चाह होनी चाहिए।

 

2 अभिवादन-

सुबह उठकर माता-पिता का और घर के सभी बड़ों के पैर छूना। इससे आयु,विद्या,यश व बल बढ़ता है। जो बच्चे सुबह से ही आशीर्वाद को बटोरते है वह खूब फलते फूलते हैं। शिक्षकों का भी आशीष मिलता रहे।मित्रों को भी नमस्कार करना चाहिए।

 

3 स्वास्थ्य रहना-

पहला सुख निरोगी काया इस कहावत को हम सुनते हैं होनहार बिरवान के होत चिकने पात अर्थात जिस पौधे के छुटपन में चिकनी और तंदुरुस्त पत्ते होते हैं वही बड़ा होकर मनोहारी पेड़ बनता है इसी प्रकार बचपन से अच्छी दिनचर्या के साथ जी कर व्यायाम व् खेलों में हिस्सा लेकर संतुलित भोजन की आदत डाल कर बढ़िया स्वास्थ्य बनाकर सुंदर और आकर्षक बनाना या विद्यार्थी जीवन की लालसा होने चाहिए स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।

 

4-चरित्र निर्माण-

हम सभी इस कहावत से खूब परिचित हैं कि यदि धन खो गया तो मानो कुछ नहीं खोया यदि स्वास्थ्य खो गया तो मानो कुछ खो गया परंतु यदि चरित्र बिगड़ गया तो समझो सब कुछ स्वाहा हो गया। इसलिए विद्यार्थी को अपने चरित्र को सर्वोत्तम स्थान देना चाहिए। चरित्र ही बहुमूल्य धन है


5-व्यवस्थित जीवन-

व्यवस्था और जीवन एक दूसरे के पर्यायवाची हैं ज्ञान गुण बचपन से ही विकसित करना होता है जो विद्यार्थी अपने बसते किताबों कापियां कपड़ों और जूतों खेल के सामान को लिखने पढ़ने की सामग्री को यथा स्थान सजा कर व्यवस्थित रूप से रखते हैं उनका जीवन शुरू से ही व्यवस्थित बन जाता है व्यवस्था को बनाए रखने में कुछ रुपया पैसा खर्च नहीं करना पड़ता है परंतु मिलता बहुत कुछ है इसके विपरीत अव्यवस्था से जीवन गर्त में चला जाता है।


 6-परिश्रम-

कर्म ही पूजा है परिश्रम और काम करने की आदत आभूषण है बचपन से ही परिश्रम करने की आदत सीखनी चाहिए बिना परिश्रम के सफलता नहीं मिलती परिश्रम से ही शरीर और मन स्वस्थ रहता है परिश्रम विद्यार्थी जीवन में जो बनना चाहते हैं वह बन जाती हैं जीवन में ऊंचाइयां प्राप्त करने के लिए निशा के साथ श्रम करना परम आवश्यक है।


7 सफलता-

सफलता के पेड़ पर ही सुख के फूल खिलते हैं सफलता से ही जीवन में उल्लास प्रसन्नता परिश्रम करने की इच्छा पैदा होती है जीवन एक खिला हुआ गुलाब बन जाता है।

ईश्वर ही सत्य है और सत्य ही ईश्वर है सत्य ही सुंदर है इसलिए सत्य के प्रति मन में लालसा चलाओ हम सभी जानते हैं की सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता है और असत्य से बढ़कर कोई पाप नहीं होता है।

जीवन मूल्यों की गणना में सत्य का प्रथम स्थान है सत्य की खोज ही विद्यार्थी जीवन की उपासना है सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने के लिए सर्वदा उत्तम रहना चाहिए सत्य को जीवन में उतारना ही शिक्षा है।


8 आज्ञा पालन-

माता-पिता एवं गुरुजनों की आज्ञा पालन करना चाहिए।

इसी तरह एक आज्ञाकारी बेटे ने माता पिता की आज्ञा मानकर श्रवण कुमार ने उन्हें तीर्थ यात्रा अपने कंधों पर कराई थी।


 

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