पेड़ नहीं काटूगा।


 एक गांव में एक ग़रीब किसान रहता था। उसका नाम मोहन था। 1 दिन मोहन खेत से घर लौटा। घर लौटा तो उसकी पत्नी बोली घर में जलाने की लकड़ी समाप्त हो गई है।भोजन कैसे बनाएं? मोहन ने कहा मुझे पानी तो पिलाओ अभी लकड़ी काट कर लाता हूं।

पत्नी ने मोहन को पानी का लोटा दिया।मोहन ने पानी पिया।फिर कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चल पड़ा।जंगल में एक हरे-भरे वृक्ष को देखा। मोहन ने उसे काटने का विचार किया।

अपनी कुल्हाड़ी उठाई और पेड़ की एक बड़ी सी डाली काट कर बहुत खुश हुआ। मन ही मन सोचा कि इतनी बड़ी डाल है कि इससे बहुत दिनों तक घर में खाना बन सकेगा।

मोहन बहुत थक गया था।वहीं पेड़ के नीचे लेट गया।पेड़ की छाया से मोहन को आराम मिला। उसे गहरी नींद आ गई। वह सो गया ।उसे सपना आया।

सपने में मोहन ने जैसे ही डाल को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वृक्ष बोला तुमने मुझे क्यों काटा? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? तुम लोग जो इतना प्रदूषण फैलाते हो। मैं तो उस प्रदूषित वायु के सारे पीष को पी लेता हूं।सब लोग को सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु देता हूं।उसी से तुम सब निरोग रहते हो।मैं ही काले काले बादलों को रोककर वर्षा करवाता हूं। फिर भी तुमने मुझे काट डाला। तुमने बहुत बड़ा अपराध किया है।

मोहन ने पेड़ की बात सुनी उसे अपनी गलती का ज्ञान हुआ। अपने किए पर उसे बहुत पछतावा हुआ। उसने पेड़ से कहा पेड़ भाई मुझे माफ कर दो। मैंने तो इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था।तुम ना होते तो हमें स्वच्छ वायु ना मिलती। पेड़ भाई तुम तो महादेवहो। हम लोगों के द्वारा उत्पन्न विष( कार्बन डाइऑक्साइड )स्वयं पी लेते हो। बदले में हमें अमृत की तरह प्राण वायु देते हो। तुम्हारे कारण वर्षा होती है।उससे हमारी फसल तैयार होती है।वृक्ष भाई मुझसे बड़ा अपराध हुआ है

मोहन जोर जोर से रोने लगा।इतने में मोहन की नींद खुल गई। वह उठ कर बैठ गया। सपने में वृक्ष की कही बातों को याद करके बा व्याकुल हो गया।

 मोहन उठ कर वृक्ष के पास गया। अपना मस्तक पेड़ की जड़ से लगाकर प्रणाम किया। हाथ जोड़कर बोला  वृक्ष भाई मुझे क्षमा कर दो। मैं संकल्प करता हूं कि अब कभी भी पेड़ नहीं करूंगा बल्कि प्रतिवर्ष की लगाऊंगा उसकी सुरक्षा करूंगा।


नोट-दोस्तों या कहानी हमें या शिक्षा देती है कि हमें कभी भी पेड़ को कभी नहीं काटना चाहिए। बल्कि कुछ ना कुछ वृक्ष लगाने चाहिए।

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