प्रकती प्रेम।


 "ओ पापी मानव!

 क्यों पाप किए जाता है?

 अपनी ही मां को तू निर्वस्त्र किया जाता है।

 वृक्ष काट कर तू धरती की,

लाज मिटाता जाता है।

 जिस आंचल ने तुझको पाला,

उसे फाड़ता जाता है।

 नहीं अभी यदि तू मानेगा,

 तो पीछे सिर पकड़ पछताएगा।

 क्षण भर में सब मिट जाएगा।

 नहीं कभी समझ तू पाएगा।

 घायल धरती प्रतिशोध करेगी, काली माई बन जाएगी।

वह भीषण विध्वंस देख,

 यह दुनिया भी थाराएगी।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने