कहाकवी कालीदास।


 आज से लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुरानी बात है। उस समय उज्जयिनी पर राजा विक्रमादित्य का राज्य था। राजा विक्रमादित्य अपनी न्यायप्रीता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे।उन्हीं दिनों एक छोटा राज्य था, मालवा उसके शासक शारदानंद थे। उनकी विद्योत्मा नाम की एक पुत्री थी। राजकुमारी बहुत ही रूपवती और विदुषी थी। उनके रूप और ज्ञान की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी। राजकुमारी की प्रतिज्ञा थी कि जो भी व्यक्ति उनको शास्त्रार्थ में परास्त कर देगा। वह उसी से विवाह करेंगे।


देश विदेश से अनेक विद्वान लोग विद्योतमा से शास्त्रार्थ के लिए आए,लेकिन कोई भी उन्हें परास्त ना कर सका। उल्टे उन्हें स्वयं अपमानित होना पड़ा।इससे उन लोगों को बड़ी आत्मा ग्लानि हुई।वे राजकुमारी के घमंड को चकनाचूर करने के उपाय सोचने लगे।


घर वापस लौटते समय उन लोगों ने मार्ग में एक ऐसे युवक को देखा। जो वृक्ष की जिस शाखा पर बैठा था, उसी को काट रहा था।


उन लोगों ने सोचा और एक दूसरे से कहा,"राजकुमारी का विवाह तो इस महा मूर्ख से होना चाहिए, तब उसका घमंड चूर चूर हो जाएगा।


उन्होंने उस युवक को समझा-बुझाकर बच्चे से नीचे उतारा और कहा," मित्र यदि तो मौन रहो तो हम तुम्हारा विवाह एक सुंदर राजकुमारी से करवा देंगे।


वह युवक तैयार हो गया।उन विद्वानों ने उसे स्नान करा, सुंदर वस्त्र पहनाएं और शासार्थ के लिए राजकुमारी विद्योत्तमा के पास ले गए।


उन्होंने राजकुमारी से कहा,"राजकुमारी यह हम सब से विद्वान हैं।ये विद्या और ज्ञान में बृहस्पति के समान हैं। यह आपसे शास्त्रार्थ करना चाहते हैं, किंतु आजकल मौन व्रत धारण किए हुए हैं, इसलिए आपको इनसे जो भी प्रश्न करना हो,केवल संकेतों में ही कीजिए।"


राजकुमारी तैयार हो गई, संकेत शुरू हो गया। राजकुमारी ने एक अंगुली उठाई वह कहना चाहती थी, कि ईश्वर एक है। मूर्ख युवक ने सोचा या मेरी एक आंख फोड़ना चाहती है,इसलिए उसने दो उंगली उठा दी। जिससे वह कहना चाहता था,कि मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। किंतु विद्वानों ने राजकुमारी को बताया, कि आप कहना चाहती हैं कि ईश्वर एक है किंतु गुरु जी का कहना है कि आत्मा और परमात्मा अलग अलग है।


इस बार राजकुमारी ने पांच उंगली उठाई,वह कहना चाहती थी। कि हमारे शरीर में पांच तत्व है, उस युवक ने समझा, कि मुझे थप्पड़ मारना चाहती है, इसलिए उसने उसे मुक्का तान कर दिखाया। विद्वानों ने इस संकेत का अर्थ बताया कि हमारे शरीर में पांच तत्व आवश्यक है, किंतु शरीर का निर्माण इन पांच तत्वों के साथ मिलने से हुआ है ना कि अलग-अलग रहने से।


राजकुमारी उत्तर सुनकर बहुत प्रसन्न हुई। उसने अपनी हार स्वीकार कर ली और उस युवक से विवाह कर लिया। वह प्रसन्न थी कि उसे विद्वान पति मिला है।


कुछ समय, वह मूर्ख उन लोगों के कहने पर मौन रहा। किंतु एक दिन ऊंट का बलबलाना सुनकर उसे रहना गया और वह उस्ट्रा उस्ट्र बोल उठा। राजकुमारी ने जब उसके मुख से गलत उच्चारण सुना। तो उसने अपना सिर पीट लिया, उसे ऐसा समझते देर न लगी, कि उसके साथ धोखा हुआ है। उसका पति एकदम निरक्षर है। दुखी होकर उसने,उसे राजमहल से निकाल दिया।


पत्नी द्वारा अपमानित होने से उस युवक की सोई हुई आत्मा जाग उठी। उसने उसी समय संकल्प लिया कि मैं जब तक पढ़ लिखकर विद्वान पंडित नहीं बन जाऊंगा। तब तक अपनी पत्नी को मुंह नहीं दिखाऊंगा। वह सीधा काशी गया और विद्या में जुट गया, कुछ ही वर्षों में वह बहुत बड़ा विद्वान बन गया और महाकवि कालिदास के नाम से विख्यात हुआ। वह संस्कृत भाषा में काव्य रचना रचनी लगा। उसके द्वारा रचित अभिज्ञान शकुंतलम, मेघदूत, रघुवंश आदि ग्रंथों की चर्चा राज दरबारों में होने लगी।उसकी विद्वत्ता को ना केवल उसकी पत्नी विधोतमा ने अपितु पूरे विश्व ने स्वीकार किया।राजा विक्रमादित्य ने कालिदास को अपने नवरत्नों में स्थान दिया। आज विश्व साहित्य में कालिदास का नाम सम्मान से किया जाता है।


Note- हमें कभी भी अपनी विद्या पर ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए।

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