स्वर्ग में एक सोने के महल का निर्माण हो रहा था। नारद जी की दृष्टि उस पर पड़ी।वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे बोले," भगवान! यह चमचमाता आता हुआ सोने का महल किसके लिए बन रहा है?
एक सच्चे भक्त के लिए भगवान विष्णु ने उत्तर दिया।किंतु देव ऋषि नारद इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए।उन्होंने मन ही मन सोचा," मैं दिन-रात भगवान का नाम जपता हूं। अतः बोले भगवान आप प्रत्यक्ष रुप से क्यों नहीं कहते कि यह मेरे लिए बनाया जा रहा है।
देव ऋषि यह महल तुम्हारे लिए नहीं है। पृथ्वी पर एक निर्धन ब्राह्मण पंडित रहता है ,यह उसके लिए है।
भगवान विष्णु की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ।बे सोचने लगे कि अब तो पृथ्वीलोक जाकर भगवान के भक्त की जांच करनी पड़ेगी।
एक दिन देव ऋषि नारद पंडित की झोपड़ी के आगे पहुंचे। एक छोटे से गांव में पत्नी और दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ वह जो भी सूखा सूखा मिलता खा कर अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। प्रातः उठकर पंडित जी स्नान आदि से निवृत होकर बड़े प्रेम से भगवान का नाम लेता और फिर गांव में अपने काम पर निकल जाता। लोगों के घर जाकर उनका कामकाज कर जो कुछ भी धन प्राप्त होता, उससे रुखा सुखा बना खाकर थोड़ी देर अपने परिवार के साथ धर्म कर्म की चर्चा करता सोने से पूर्व वह फिर एक बार प्रेम से भगवान का नाम लेता।
उसकी यह दिनचर्या देखकर नारद जी को बड़ा दुख हुआ, कि भगवान विष्णु एक अत्यंत साधारण गृहस्थ को मुझ से ऊंचे भक्त का स्थान देकर मेरे साथ अन्याय कर रहे हैं। वह सीधे देव लोक पहुंचे, भगवान विष्णु को पंडित की सारी दिनचर्या सुना कर उन्होंने अपने मन का दुख उन पर प्रकट कर दिया। उनकी बातों का नारायण ने कोई जवाब नहीं दिया वह लक्ष्मी जी से बोले," दूध से भरा एक कटोरा ले आइए।
देव ऋषि एक काम करें,"भगवान विष्णु ने भारत से कहा। क्या तुम इस कटोरे को लेकर देवलोक की परिक्रमा कर सकते हो।
"यह कौन सी बड़ी बात है, भगवान देव ऋषि नारद ने कहा।
क्योंकि यह ध्यान रहे,इसमें से एक भी बूंद दूध नीचे नहीं गिरने पाए"
ऐसा ही होगा,प्रभु कहकर नारद जी कटोरा हाथ में ले कर देवलोक की परिक्रमा करने निकल पड़े।कुछ ही घंटों में नारद जी ने देवलोक की परिक्रमा पूरी कर ली। बहुत ही उत्साहित होकर नारद जी विष्णु भगवान के पास पहुंचे और बोले एक बूंद भी दूध नहीं गिरा है, भगवान।
वह तो मैं समझ गया, किंतु यह बताओ तुमने परिक्रमा करते समय मेरा नाम कितनी बार लिया।
"एक बार भी नहीं। नारद जी ने कहा," वास्तव में मेरा सारा ध्यान कटोरे की दूर पर केंद्रित था, फिर भला आपका नाम कैसे लेता।
"अब जरा सोचो।तुम पर एक कटोरे भर दूध का बोझ कुछ देर के लिए था,तब तो तुम मेरा नाम लेना भूल गए,किंतु उस निर्धन ब्राह्मण को देखो,उस पर पूरी गृहस्ती और सांसारिकता का बोझ है, उसे उसकी उधर पूर्ति की चिंता है। इसके बाद भी वह बड़े प्रेम से मेरा नाम दिन में दो बार नियमित रूप से लेता है।देव सिंह सच्चा भक्त वह नहीं जो रात दिन मेरा नाम रटता रहे, बल्कि वह है जो सदैव प्रत्येक स्थिति में निशुल्क एवं निस्वार्थ भाव से मुझे स्मरण करना नहीं भूलता है।
भगवान विष्णु की बात से नाराज जी को सच्चा आत्मबोध हुआ। वे बहुत लिखित हुए।
नोट-भगवान की पूजा भले ही कम करनी चाहिए, लेकिन ध्यान से करनी चाहिए जिससे पूरा ध्यान भगवान की ओर केंद्रित हो।